क्‍योंकि सब्र का फल मीठा होता हैै - फारूक अब्‍बास

फारूक अब्‍बास। बचपन में लोगों से कहते सुना था कि सब्र का फल मीठा होता है। उस समय समझ नही आता था कि येे कौन सेे फल हैै जो मीठा होता है और आज तक हमनें देखा भी नही। बचपन में बडी उत्‍सुकता थी इस फल को खानें की। लेकिन ये बाजार में नही मिलता था। धीरे धीरे बडा होता गया और समझ में अाता गया कि सब्र का फल खानें के लिये नही होता। दरअसल इस नाम को कोई फल ही नही होता। लेकिन इस कहावत का मतलब समझ में नही आया था। 


बात उन दिनों की हैै जब मैंने 12th पास किया और कुछ काम करनें का निश्‍चय किया। ऐसा नही था कि मैं फेमिली बेकग्राउण्‍ड सेे कमजोर था और मुझे पैसों की जरूरत थी। बल्कि ईश्‍वर की दया सेे मेेरा फैमिली बैंकग्राउण्‍ड काफी अच्‍छा था। मुुझे आवश्‍यकता नही थी काम करनें की। लेकिन दिमाग की अन्‍दर एक कीडा था कि याद 25 साल की उम्र का होने तक करोडपति बनना है। हॉलांकि ये लक्ष्‍य आज भी है लेेकिन कैसे बनना हैं ये उस वक्‍त पता नही था। आज अच्‍छे से पता हैै। उस वक्‍त एक बैचेनी थी कि अभी 18 साल का हो गया हैै मेरे पास केवल 7 साल बचे हैं। आज सुुकून हैं कि अभी तो 22 साल का हुुुुआ हूॅूॅ और मेरे पूरेे 3 साल शेष हैं। उस वक्‍त में और आज काफी फर्क हैं क्‍योंकि उस वक्‍त मैं पैसों को ज्‍यादा महत्‍वता दे रहा था और आज सुुकून को। कुछ भी समझ में आ गया कि सुकून ज्‍यादा जरूरी हैै। और एक बात यह भी हैै कि जो काम सुकून से किया जाऐ उसके सफल होने के चॉंस 99 प्रतिशत होते हैं।


दरअसल मुझे लगता हैै एक भाषा में सुुकून और सब्र लगभग एक जैसे ही हैं। मैनें कहींं एक कहानी पढी थी या शायद सुनी थी ठीक सेे याद नही। लेेकिन कहानी याद है। आप भी पढिये क्‍या कहानी थी

 एक बार एक बाप बेटे कहीं घूमने गये थे और वो भटक गये। वो एक ऐसी जगह पहॅुॅुच गये जहॉ जंगल ही जंगल था। उन्‍हे प्‍यास लगी लेकिन दूर दूर तक पानी का कहीं नामों निशान नही था। कॉफी भटकनें केे बाद वो थक हार कर बैठ गयेे। उन्‍होने ईश्‍वर से प्रार्थना की कि भगवान कुुछ कर वर्ना हम प्‍यास से मर जाऐंगे। शायद ईश्‍वर नें उनकी प्रार्थना सुन ली अौर उन्‍हे जंगल में दो फावडे मिल गये। दोनो बाप बेेटो के मन में एक आईडिया आया उन्‍होने सोचा कि यहॉ पानी नही मिलेगा। पानी तब ही मिल सकता हैै जब हम कुुआ खोद ले। दोनो बाप बेटे कुंआ खोदनेे में जुट गये। जब उन्‍होने 20 फुट तक गढढा खोद लिया उन्‍हे लगने लगा कि इस जगह पर पानी नही हैं। फिर वो दूसरी जगह गढढा खोदने लगे। उन्‍हे फिर लगने लगा कि इस जगह भी पानी नही हैं और वो दूसरी जगह गढढा खोदने लगे। ऐसा उन्‍होने कई बार किया लेकिन पानी नही मिला और वो व्‍याकूल होकर उन्‍ही गढढों में गिर कर मर गये। कुछ दिन बाद एक और भटका हुुआ राहगीर वहॉ सेे निकला वो भी प्‍यास से व्‍याकूल था। उसने देेखा कि वहॉ दो लोग मरे पडे हैं और ढेर सारे गढढे खुद पडें। वो कुुछ समझा नही। लेकिन उसे प्‍यास लगी हुुई थी। उसने वहॉ पडे फावडें को उठाकर पहले सेे खुदेे एक गढढे को आैैर गहरा करना शुरू कर दिया। और सिर्फ 5 फुट गढढा खोदने पर ही पानी निकल आया और उस व्‍यक्ति ने पानी पी लिये। अब पूरा माजरा उस व्‍यक्ति की समझ मेंं आ चुका था। दरअसल उस जंगल में पानी 25 फुट पर था। और उन बाप बेटो ने सैकडों फुट गढढा खोद दिया लेकिन पानी नही मिला। लेकिन अगर वो एक ही जगह 25 फुट गढढा खोद लेते तो शायद आज वो जिन्‍दा होते। वो बाप बेटेे इसलिये नही मरे कि वो प्‍यासे थे बल्कि वो इसलिये मरे थे कि उनके पास सब्र नही था। 


ऐसा ही हम निजी जिन्‍दगी में करते हैं एक काम को करनें लगतेे हैं मनचाही सफलता न मिलने पर कोई दूसरा काम शुरू कर देेते हैंं। एक कम्‍पनी में जाॅॅब करते हैं फिर प्रमोशन न मिलनें पर दूसरी कम्‍पनी ज्‍वाइन कर लेते हैं और बाद में महसूस होता है कि दूसरी कम्‍पनी भी ठीक नही हैं। दरसअल हम पैसे कमानें के लिये इतनी जल्‍दी में रहते हैं कि सब्र नाम की चीज हमसे कहीं खो जाती है। और हम नाकामयाब हो जाते हैं। हो सकता है कि शुरूआत में हम असफल रहें लेकिन बाद इतने सफल हो जाऐं कि शायद किसी नेे सोचा भी न हो। 

ये बात सत्‍य है कि जब तक सही जगह काम नही करते तब तक सफल नही होते। लेकिन यह भी बात सत्‍य है कि अगर सब्र के साथ काम लिया जाऐ तो बंजर जमीन पर भी खेती हो सकती है। सही गलत चुनने का हक सबको है लेकिन सब्र केे साथ सही गलत चुनोगे तो ज्‍यादा फायदे में रहोगे। किसी बिजनिस को जल्‍दबाजी में शुरू करके फिर 3 महीनें बाद बन्‍द करना पडेे इससे अच्‍छा है कि पहले 3 महीनें सब्र से उस बिजनिस काेे सीखों आंकलन करो क्‍या वो आपके लिये उचित हैै। हो सकता हैै कि इस वजह सेे आप 3 महीनें देेरी से अपना बिजनिस शुरू कर पाओ लेकिन येे भी पक्‍का है कि फिर उस बिजनिस को सफल होनें से कोई भी नही रोक सकता। 


अभी मैने एक मल्‍टीलेवल मार्केटिंंग कम्‍पनी ज्‍वाइन की। मै जिस दिन ज्‍वाइन हुुअा उसी दिन मैने अपने एक दोस्‍त को ज्‍वाइन करवाया। मेरे उस दोस्‍त ने 1 महीनें काम किया फिर किसी कम्‍पनी में जाॅॅब करनें चला गया। उसके बाद उस कम्‍पनी को भी छोड कर चला आया  और अपना पैसा लगा कर खुद का बिजनिस शुरू किया। लेकिन वहॉ भी सफलता नही मिली तो मेरे पास आया और फिर से वो मल्‍टीलेवल माार्केटिंंग कम्‍पनी में काम करनें की सोचने लगा। लेकिन तब तक मैं उस कम्‍पनी मेेंं सिल्‍वर हो चुका था (मेरी 3 आईडी सिल्‍वर हो चुकी थीं ) और गोल्‍ड होने वाला था। यकीन मानिये वो अपना पैसा लगाकर जिस बिजनिस को कर रहा था मेरी इनकम उसके बिजनिस से ज्‍यादा थी। जबकि मैने पैसा भी नही लगाया। आज वो उस बिजनिस को ढो रहा हैै क्‍योंकि अपनी जमा पूॅजी उसमें लगा दी है। लेकिन उसकी रूचि उस बिजनिस से खत्‍म हो गयी हैै और अब वो मेेरी तरह उस मल्‍टीलेवल मार्केटिंग कम्‍पनी में ध्‍यान देना शुरू कर दिया है। लेकिन वो दोनो तरफ अभी असफल है क्‍योंकि वो न तो पर्याप्‍त समय अपने बिजनिस को देे पा रहा हैै और न ही मल्‍टीलेवल मार्केटिंंग कम्‍पनी को। देखिये कितना अन्‍तर हैंं मुझमें और उसमें उसने पैसा भी लगाया संंघर्ष भी किया लेकिन परिणाम क्‍या अाया। वो 6 महीनें पहले भी वहीं था अौर आज भी। और मैने सिर्फ सब्र सेे काम लिया और मैं उससे 6 महीनेंं आगे निकल गया। 


मेरी तो आज समझ में आ गया कि वास्‍तव में सब्र की ताकत को पहच‍ाानिये। दोस्‍तो मैैने आपसे पहले भी कहा है कि अगर सब्र से काम लिया जाऐ तो बंजर भूमि पर भी फसल उगाई जा सकती हैै। आज हो सकता हैै कि मेरे पास इतना पैसा न हो कि जितना मै सोचता हूॅूॅ लेकिन आज उतना पैसा जरूर है जितने की मुझे जरूरत है। यह सब सम्‍भव हुआ हैै सब्र से। दोस्‍तो अगर अपने अनुभव लिखनें बैंंठूगा तो शायद एक किताब लिख जाऐ इसलिये आज बस यही कह कर अपनी कल रोकना चाहूॅगा कि अगर कामयाब होना है आपको अपने पास एक चीज सबसे पहले रखनी पडेगी वो है सब्र क्‍योंकि सब्र का फल मीठा होता है।


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